JABALPUR

Thursday, August 15, 2013

आज़ादी की चाह..?
गरीबी, भुखमरी, बेकारी अब आज़ादी को तड़पती हैं.
महगाई और बेरोजगारी सरकारी नीतियों से बढ़ती हैं.!
भ्रस्टाचार,और शोषण से समाज को क्या मिलेगी मुक्ति ..?
अरे कुछ तो सोचो,कुछ तो करो कुछ तो होगी युक्ति...!
कुपोषण,बाल श्रम और किशानो का आत्म घात..!
कुंठित युवा,ज्ञान का पलायन, इनसे,भी दिलाओ निजात....!
सीमओं पर बढ़ता अतिक्रमण,तेल पर हटता नियंत्रण....?
आज़ादी की चाह में ये,घटनाओ को देते हैं आमंत्रण..?
हर क्षेत्र में माफियो की बढ़ती जमात ,बिगड़ते हालात...!
'संतोष" धधकते सवालो से मुक्ति, आज़ादी की सौगात...?

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